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ग़ज़ल
एक मुद्दत से यहाँ उम्र-ए-रवाँ तेरे बग़ैर
वक़्फ़-ए-आलाम-शुमारी है तुझे क्या मालूम
सिकंदर अली वज्द
ग़ज़ल
क़ैस जंगल में अकेला है मुझे जाने दो
ख़ूब गुज़रेगी जो मिल बैठेंगे दीवाने दो